नई दिल्ली, 25 अक्टूबर (आईएएनएस)। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने शुक्रवार को विदेश मामलों की संसद की स्थायी समिति को इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के बारे में जानकारी दी। उन्होंने इस मुद्दे पर भारत के सतत और दीर्घकालिक रुख के बारे में बताया।
एक सूत्र ने विस्तार से बताया, "बैठक में विदेश सचिव ने इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष और भारत की भूमिका पर एक प्रस्तुति दी। विदेश सचिव ने कहा कि भारत के इजरायल और फिलिस्तीन के साथ पुराने संबंध हैं और वह वहां पैदा हुई मानवीय समस्या को लेकर चिंतित है।"
भारत लंबे समय से बातचीत के जरिए दो-राज्य समाधान का समर्थन करता रहा है ताकि सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहारिक फिलिस्तीन राज्य की स्थापना हो जो इजरायल के साथ शांति से रह सके।
एक सूत्र के मुताबिक एक सांसद ने सवाल पूछा कि एक तरफ हम फिलिस्तीन को मानवीय सहायता दे रहे हैं, लेकिन ऐसा क्यों है कि भारत इजरायल के पक्ष में खड़ा नजर आ रहा है। इस पर विदेश सचिव ने कहा कि ऐसा नहीं है, भारत की नजर में फिलिस्तीन की एक अलग पहचान है।
बता दें भारत ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) के माध्यम से फिलिस्तीन के लोगों के लिए मानवीय सहायता भेजी। सहायता की पहली खेप में 30 टन दवाइयां और फूड आइटम शामिल हैं।
फिलिस्तीनी मुद्दे के लिए भारत का समर्थन देश की विदेश नीति का अभिन्न अंग है।
1974 में, भारत फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) को फिलिस्तीनी लोगों के एकमात्र और वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब राज्य बना।
1988 में, भारत फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक बन गया। 1996 में, भारत ने गाजा में अपना प्रतिनिधि कार्यालय खोला, जिसे बाद में 2003 में रामल्लाह में स्थानांतरित कर दिया गया।
बैठक में कुछ विपक्षी सांसदों ने हाल के दिनों में कनाडा के साथ भारत के संबंधों में आई खटास का मुद्दा भी उठाया, लेकिन विदेश सचिव ने इस पर कुछ नहीं कहा।
वहीं कुछ विपक्षी सांसदों ने चीन के साथ सीमा विवाद का मुद्दा भी उठाया। इस पर विदेश सचिव ने कहा कि 2020 से पहले वाली स्थिति बहाल करने की कोशिश की जा रही है। विदेश सचिव ने कहा कि इस संबंध में सदस्यों को अलग से जवाब भेजा जाएगा।
--आईएएनएस
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