अब्दुल और बाबा
जब किसी जेहादी के जाल में फंसी लड़की को जेहादी की असलियत के बारे में बताया जाता है तो छूटते ही उसका जवाब होता है--
"बाकी का पता नहीं पर मेरा अब्दुल ऐसा नहीं है।"
और इधर इन जन्मनाजातिवादी शंकराचार्यों, मालपुआ भकोसते ऐश्वर्यपूर्ण मठाधीशों, लिपीपुते स्त्रैण अनिरुद्धाचार्यों, चरबीगोले ढोलकीनंदनो, रसिया आसारामों, धूर्त रामपालियों, मटकाकर नैन नचाते डबल श्री और शोमैन कृपालुओं, जग्गियों और महंतों के बारे में अगर सच्चाई बताई जाए तो इनके चेले छूटते ही बोलते हैं---
"बाकी का पता नहीं लेकिन मेरा बाबा ऐसा नहीं हैं।"
नतीजा:- प्रेमिका का सफर या तो सूटकेस में या फ्रिज में पूरा होता है और ऐसे अंधभक्तों का सफर या तो घर की इज्जत व धन के गंवाने या फिर भीड़ में कुचले जाने पर पूरा होता है।
जय अब्दुल, जय बाबा।
जिस देश में वेद, उपनिषद व भगवदगीता के प्रतिपादक व प्रवक्ता राम, कृष्ण, शिव के रहते और 'अप्प दीपो भव' के परमपुरुषार्थ का संदेश देने वाले बुद्ध व महावीर जैसे प्रज्ञापुरुषों के रहते इन सस्ते बाबों की जरूरत पड़ती हो तो इस देश का कुछ नहीं हो सकता।
Dr GP
जब किसी जेहादी के जाल में फंसी लड़की को जेहादी की असलियत के बारे में बताया जाता है तो छूटते ही उसका जवाब होता है--
"बाकी का पता नहीं पर मेरा अब्दुल ऐसा नहीं है।"
और इधर इन जन्मनाजातिवादी शंकराचार्यों, मालपुआ भकोसते ऐश्वर्यपूर्ण मठाधीशों, लिपीपुते स्त्रैण अनिरुद्धाचार्यों, चरबीगोले ढोलकीनंदनो, रसिया आसारामों, धूर्त रामपालियों, मटकाकर नैन नचाते डबल श्री और शोमैन कृपालुओं, जग्गियों और महंतों के बारे में अगर सच्चाई बताई जाए तो इनके चेले छूटते ही बोलते हैं---
"बाकी का पता नहीं लेकिन मेरा बाबा ऐसा नहीं हैं।"
नतीजा:- प्रेमिका का सफर या तो सूटकेस में या फ्रिज में पूरा होता है और ऐसे अंधभक्तों का सफर या तो घर की इज्जत व धन के गंवाने या फिर भीड़ में कुचले जाने पर पूरा होता है।
जय अब्दुल, जय बाबा।
जिस देश में वेद, उपनिषद व भगवदगीता के प्रतिपादक व प्रवक्ता राम, कृष्ण, शिव के रहते और 'अप्प दीपो भव' के परमपुरुषार्थ का संदेश देने वाले बुद्ध व महावीर जैसे प्रज्ञापुरुषों के रहते इन सस्ते बाबों की जरूरत पड़ती हो तो इस देश का कुछ नहीं हो सकता।
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अब्दुल और बाबा
जब किसी जेहादी के जाल में फंसी लड़की को जेहादी की असलियत के बारे में बताया जाता है तो छूटते ही उसका जवाब होता है--
"बाकी का पता नहीं पर मेरा अब्दुल ऐसा नहीं है।"
और इधर इन जन्मनाजातिवादी शंकराचार्यों, मालपुआ भकोसते ऐश्वर्यपूर्ण मठाधीशों, लिपीपुते स्त्रैण अनिरुद्धाचार्यों, चरबीगोले ढोलकीनंदनो, रसिया आसारामों, धूर्त रामपालियों, मटकाकर नैन नचाते डबल श्री और शोमैन कृपालुओं, जग्गियों और महंतों के बारे में अगर सच्चाई बताई जाए तो इनके चेले छूटते ही बोलते हैं---
"बाकी का पता नहीं लेकिन मेरा बाबा ऐसा नहीं हैं।"
नतीजा:- प्रेमिका का सफर या तो सूटकेस में या फ्रिज में पूरा होता है और ऐसे अंधभक्तों का सफर या तो घर की इज्जत व धन के गंवाने या फिर भीड़ में कुचले जाने पर पूरा होता है।
जय अब्दुल, जय बाबा।
जिस देश में वेद, उपनिषद व भगवदगीता के प्रतिपादक व प्रवक्ता राम, कृष्ण, शिव के रहते और 'अप्प दीपो भव' के परमपुरुषार्थ का संदेश देने वाले बुद्ध व महावीर जैसे प्रज्ञापुरुषों के रहते इन सस्ते बाबों की जरूरत पड़ती हो तो इस देश का कुछ नहीं हो सकता।
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