• एक बार फिर से सेना के विरुद्ध खड़ी हो गई है कांग्रेस


    एक अग्निवीर सैनिक की मृत्यु पर उनके परिवार को दिए जाने वाले पैसे के मामले पर कांग्रेस ने इतना जहरीला झूठ बोला कि खुद सेना को सामने आ कर उसका खंडन करना पड़ा।

    आप सोचिये... यह कितनी बड़ी बात है कि लोकसभा में विपक्ष के नेता द्वारा संसद में एक बहुत बड़ा झूठ बोला गया, वह भी इतने संवेदनशील मामले पर... जिसमें सरकार, रक्षा मंत्रालय और सेना को लपेटा गया... और अंततः सेना को खुद इस झूठ को उजागर करने के लिए सामने आना पड़ा।

    आपको लगा होगा यह पहली बार हुआ है... लेकिन ऐसा है नहीं। आज कांग्रेस सेना के सम्मान के लिए हल्ला मचा रही है... लेकिन सच जानते हैं क्या है?

    कांग्रेस ने आजादी के बाद जिस संस्था को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है, जिस संस्था को सबसे ज्यादा बेइज्जत किया है... वह है भारतीय सेना।

    चलिए आपको बताते हैं कुछ अनजान किस्से... जो शायद आपको नहीं पता हों... कैसे और कहाँ कांग्रेस ने सेना के सम्मान को तार तार किया है।

    तीन मूर्ति भवन तो आपने सुना ही होगा... यह 1930 में बन कर तैयार हुआ था... इसका नाम था फ्लैग स्टाफ हाउस... जिसे तत्कालीन भारतीय सेना के कमांडर इन चीफ के लिए बनाया गया... यानी तब के सेना अध्यक्ष के लिए।

    और जैसे ही आजादी मिली... नेहरू जी धड़धड़ाते हुए इस 30 एकड़ के विशाल भवन में घुस गए और इसे अपना घर बना लिया... सेना को तुरंत बाहर निकाल दिया गया।

    उसके बाद यहाँ नेहरू मेमोरियल बना दिया, प्लेनेटरियम बना दिया, लाइब्रेरी बना दी, म्यूजियम बना दिया... कुल मिलाकर पूरी तरह से कब्ज़ा कर लिया।

    वो तो भला हो मोदी का... जिन्होंने इस सम्पत्ति को नेहरू गाँधी परिवार के चंगुल से निकाला... और इसे अब प्रधानमंत्री संग्रहालय बना दिया गया है... जहाँ सभी प्रधानमंत्रियों के काम के बारे में बताया जाता है।

    आजादी के पहले हमारे देश के जितने भी सैनिक मारे गए थे युद्ध में... उनके लिए इंडिया गेट बनाया गया था... लेकिन उसके बाद बलिदान हुए सैनिकों के लिए कुछ नहीं था... 50-60 के दशक से ही सेना एक वॉर मेमोरियल बनाने की मांग करती आई थी... जिसे कांग्रेस सरकार ने कभी नहीं माना।

    इस काम के लिए भी मोदी जी ही आगे आये और वॉर मेमोरियल बनवाया।

    हमारे प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी तो सेना को कभी चाहते ही नहीं थे... उनके हिसाब से भारत जैसे शांतिप्रिय देश को सेना नहीं चाहिए... इतना भारी भरकम खर्च नहीं करना चाहिए... उनकी इसी सोच के कारण उनके सेना के साथ सम्बन्ध अच्छे नहीं रहे।

    आजादी के बाद भारतीय सेना का नेतृत्व करने के लिए तीन बड़े अफसर तैयार थे... जिनमें से एक थे तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल करियप्पा... लेकिन नेहरू जी ने चुना था जनरल रॉय बुचर को... जो जनवरी 1949 तक भारतीय सेना के चीफ रहे।

    भारत के फील्ड मार्शल करियप्पा के साथ भी नेहरू जी ने कोई अच्छा व्यवहार नहीं किया। जब 1947-48 में पाकिस्तान के साथ लड़ाई हुई तो नेहरू जी UN पहुंच गए, जबकि 2-3 दिन और लड़ाई चलती तो POK, गिलगित बल्टीस्तान भारत के पास होते।

    जब तत्कालीन जनरल करियप्पा ने इस बारे में नेहरू जी से पूछा, तो उन्हें दुनिया जहाँ की राजनीति का ज्ञान मिला।

    1951 में जब NEFA, जिसे हम अरुणाचल प्रदेश के नाम से जानते हैं... वहाँ कुछ चीनी सैनिक पकड़े गए थे, जिनके पास से कुछ आपत्तिजनक नक़्शे और जानकारियां मिली थी... जनरल करियप्पा ने यह बात जब नेहरू जी को बताई... तो उन्हें यह कह कर चुप करा दिया गया, कि अब क्या तुम हमें बताओगे कि हम किसे अपना दोस्त समझें और किसे दुश्मन।

    यह सारी जानकारियां फील्ड मार्शल करियप्पा के बेटे एयर मार्शल केसी करियप्पा ने उनकी बायोग्राफी में लिखी हैं।

    नेहरू जी ने फील्ड मार्शल करियप्पा के साथ बहुत खेल किये... उन्हें परेशान किया... उनकी सिफारिश नहीं मानते थे... और जब वह इस्तीफ़ा देने को कहते थे तो टाल मटोल करते थे।

    ऐसे ही नेहरू जी ने जनरल थिमैया जी के साथ किया... उन्हें गुस्सा हो कर इस्तीफ़ा देने को कहा... और कुछ ही घंटे बाद वापस लेने को कहा।

    1962 के युद्ध में भी नेहरू जी ने अपने मनमुताबिक लोगों को युद्ध की अगुवाई करने को कहा... जनरल थापर... जो करण थापर के पिता हैं... और रोमिला थापर जिनकी भतीजी थी... उन्हें आगे बढ़ाया।

    और परिणाम क्या मिला, आपको पता ही है।

    भारत द्वितीय विश्व युद्ध के समय तक दुनिया के बड़े रक्षा उत्पाद देशों में आता था... मित्र देशों के लिए हमारी आयुध कारखानों से हथियार बन कर जाते थे...

    लेकिन नेहरू जी और उनके मित्र रक्षामंत्री मेनन के अनुसार तो यह सब बेकार था... उन्होंने आयुध कारखानों में हथियार की जगह चीनी मिट्टी के बर्तन... छोटे मोटे उपकरण बनवाने शुरू किये और सेना से सम्बंधित चीजें, जैसे कपड़े, जूते, मोज़े तक बनाने बंद कर दिए... और जब 1962 में युद्ध हुआ, तो हमारे पास गोलियां नहीं थीं...
    सैनिकों के लिए कपड़े नहीं थे... सर्दी से बचाव के लिए कपड़े नहीं थे... जूते मोज़े तक नहीं थे।

    1971 का युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के सबसे बड़े युद्ध में से एक था... और 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों का आत्मसमर्पण करवाना तो बहुत बड़ा कारनामा था... जो आधुनिक इतिहास में अनूठा था। ऐसे कारनामें करने वाली आर्मी को मान सम्मान, पैसा मिलना चाहिए था... लेकिन मिला क्या?? आर्मी की OROP बंद कर दी गई।

    हमारे देश के हीरो, फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को कई सालों तक सैलरी और अन्य भत्ते नहीं दिए गए... इन चीजों के लिए उन्हें लड़ना पड़ा... और बाद में उनकी मृत्यु से कुछ ही समय पहले उन्हें यह पैसा दिया गया था।

    उनकी मृत्यु पर तत्कालीन केंद्रीय सरकार ने एक रक्षा राज्यमंत्री को भेजा... अन्य कोई मंत्री नहीं गया था... उनके अंतिम संस्कार में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, रक्षा मंत्री और यहाँ तक की तीनों सशस्त्र बल चीफ में से कोई नहीं गया।

    मानेकशॉ जी हमारे देश के सबसे बड़े हीरो में से एक रहे हैं... उनका कैसा सम्मान किया वो आप देख लीजिये।

    राजीव जी तो और भी आगे निकले... कहा जाता है कि भारतीय शांति रक्षा सेना को अपने अहंकार संतुष्टि के लिए श्रीलंका भेज दिया... कश्मीर जैसे ऊँचे इलाके और मैदानी इलाकों में तैनात सैनिकों को रातों रात जाफना के घने अँधेरे जंगलों में भेज दिया गया... वो भी गुरिल्ला आतंकवादियों LTTE से लड़ने के लिए।

    कभी समय हो तो जाफना विश्वविद्यालय हेलिड्रॉप के बारे में पढ़ियेगा... माना जाता है कि बिना किसी तैयारी और बेकार ख़ुफ़िया तंत्र के कारण हमारे 36 सैनिक मारे गए।

    जब हमारे सैनिकों को हेलीकाप्टर से जाफना विश्वविद्यालय में ड्रॉप किया गया... तब तक उन्हें चारों तरफ से घेर लिया गया था... और उसके बाद LTTE वालों ने उन्हें गोलियों से छिन्न भिन्न कर दिया था... एक एक सैनिक के शरीर में पचासों गोलियाँ पाई गईं थीं... इसी से समझ लीजिये यह कैसा ऑपरेशन हुआ होगा।

    कारगिल युद्ध से पहले तो हमारे सैनिकों के शव वापस घर भेजने की व्यवस्था ही नहीं होती थी... डेड बॉडी के दर्शन नहीं होते थे परिवार को।

    कारगिल युद्ध में पहली बार यह सुनिश्चित किया गया कि बलिदान हुए सैनिकों के परिवारों को उनकी डेड बॉडी तो मिलें... साथ ही कारगिल युद्ध के बाद ही मृत सैनिकों के परिवारों के लिए क्षतिपूर्ति रकम बढ़ाई गई... कई तरह की सहूलियत दी गई... बच्चों के लिए स्कूल कॉलेज में आरक्षण आदि दिया गया... परिवार को पेट्रोल पंप देने की व्यवस्था की गई।

    इस रकम को मोदी सरकार के आने के बाद और बढ़ाया गया।

    कांग्रेस को पसंद नहीं था कि मृत सैनिकों के शव उनके परिवारों को मिले... इसलिए कांग्रेस ने ताबूत घोटाले का हौवा खड़ा कर दिया... जॉर्ज फर्नांडिस जैसे बेहद ईमानदार नेता पर लांछन लगाया... और वह कई साल इस दाग़ को मिटाने के लिए लड़ते रहे...

    अंततः सुप्रीम कोर्ट ने सारे आरोप नकारे... लेकिन तब तक फर्नांडिस जी शारीरिक रूप से अक्षम हो चुके थे... उनके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था... वह अपने ऊपर लगे इस दाग़ को मिटने की ख़बर को समझे बिना ही दुनिया से चले गए।

    भारतीय सेना के CAOS को गली का गुंडा कहने वाला भी एक कांग्रेसी नेता ही था... शीला दीक्षित का बेटा संदीप दीक्षित।

    CAOS वीके सिंह को बदनाम करने वाले... और उन पर तख्तापलट करने का आरोप लगाने वाले भी कांग्रेस इकोसिस्टम के लोग थे।

    उरी की सर्जीकल स्ट्राइक, बालाकोट की सर्जीकल स्ट्राइक का पाकिस्तान से ज्यादा मजाक कांग्रेस वालों ने ही उड़ाया।

    चीन के साथ कभी भी झड़प होती है... तो कांग्रेस और उसका पूरा इकोसिस्टम भारतीय सेना को बदनाम करने के लिए खड़ा होता है। कोई कहता है चीन 1000 किलोमीटर अंदर आ गया... कोई कहता है हमारे जवान निकम्मे हैं।

    हमारे देश के प्रथम CDS, जनरल बिपिन रावत का अपमान करने वाले कांग्रेस के ही लोग थे... उनकी मृत्यु पर हंसने वाले भी उसी इकोसिस्टम के लोग थे।

    मोदी ने और CDS जनरल रावत ने मिलकर मेक इन इंडिया पर जोर दिया... जितने भी हथियार दूसरे देशों से लिए, सब गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट डील में लिए... और जो लिए उन्हें भारत में ही उत्पादन करने और तकनीक के हस्तांतरण की शर्त के साथ लिया।

    यही कारण था कि कांग्रेस वाले CDS रावत जी से चिढ़ते थे।

    OROP के लिए सेना 1971 से इसी कांग्रेस सरकार से लड़ रही थी... 2014 में जब इन्हें लगा कि अब सरकार नहीं बनेगी... तब सेना के लोगों को रिझाने के लिए चुनाव से पहले OROP के लिए मात्र 500 करोड़ रुपए आवंटित करके गए थे मनमोहन सिंह जी।

    जबकि 500 करोड़ में तो कुछ नहीं होता...जब मोदी जो ने OROP लागू किया... तो पुराने बकाये के रूप में 10,000 करोड़ रुपए की रकम लाखों पेंशनर्स को दी गई थी... उसके बाद हर साल 7-8 हजार करोड़ का सालाना खर्च सिर्फ OROP पेंशन में होता है।
    और कांग्रेस 500 करोड़ का लॉलीपॉप दिखा कर सैनिकों के वोट खरीदना चाहती थी... है ना कमाल की बात।

    और आज यही कांग्रेस वाले सेना के सम्मान की बात करते हैं...

    खैर कांग्रेस से ज्यादा तो हमारे देश के लोग कमाल हैं... जिन्हें यह सब पता होते हुए भी शर्म नहीं आती... और अपने छोटे मोटे स्वार्थ के लिए बिक जाते हैं।
    एक बार फिर से सेना के विरुद्ध खड़ी हो गई है कांग्रेस एक अग्निवीर सैनिक की मृत्यु पर उनके परिवार को दिए जाने वाले पैसे के मामले पर कांग्रेस ने इतना जहरीला झूठ बोला कि खुद सेना को सामने आ कर उसका खंडन करना पड़ा। आप सोचिये... यह कितनी बड़ी बात है कि लोकसभा में विपक्ष के नेता द्वारा संसद में एक बहुत बड़ा झूठ बोला गया, वह भी इतने संवेदनशील मामले पर... जिसमें सरकार, रक्षा मंत्रालय और सेना को लपेटा गया... और अंततः सेना को खुद इस झूठ को उजागर करने के लिए सामने आना पड़ा। आपको लगा होगा यह पहली बार हुआ है... लेकिन ऐसा है नहीं। आज कांग्रेस सेना के सम्मान के लिए हल्ला मचा रही है... लेकिन सच जानते हैं क्या है? कांग्रेस ने आजादी के बाद जिस संस्था को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है, जिस संस्था को सबसे ज्यादा बेइज्जत किया है... वह है भारतीय सेना। चलिए आपको बताते हैं कुछ अनजान किस्से... जो शायद आपको नहीं पता हों... कैसे और कहाँ कांग्रेस ने सेना के सम्मान को तार तार किया है। तीन मूर्ति भवन तो आपने सुना ही होगा... यह 1930 में बन कर तैयार हुआ था... इसका नाम था फ्लैग स्टाफ हाउस... जिसे तत्कालीन भारतीय सेना के कमांडर इन चीफ के लिए बनाया गया... यानी तब के सेना अध्यक्ष के लिए। और जैसे ही आजादी मिली... नेहरू जी धड़धड़ाते हुए इस 30 एकड़ के विशाल भवन में घुस गए और इसे अपना घर बना लिया... सेना को तुरंत बाहर निकाल दिया गया। उसके बाद यहाँ नेहरू मेमोरियल बना दिया, प्लेनेटरियम बना दिया, लाइब्रेरी बना दी, म्यूजियम बना दिया... कुल मिलाकर पूरी तरह से कब्ज़ा कर लिया। वो तो भला हो मोदी का... जिन्होंने इस सम्पत्ति को नेहरू गाँधी परिवार के चंगुल से निकाला... और इसे अब प्रधानमंत्री संग्रहालय बना दिया गया है... जहाँ सभी प्रधानमंत्रियों के काम के बारे में बताया जाता है। आजादी के पहले हमारे देश के जितने भी सैनिक मारे गए थे युद्ध में... उनके लिए इंडिया गेट बनाया गया था... लेकिन उसके बाद बलिदान हुए सैनिकों के लिए कुछ नहीं था... 50-60 के दशक से ही सेना एक वॉर मेमोरियल बनाने की मांग करती आई थी... जिसे कांग्रेस सरकार ने कभी नहीं माना। इस काम के लिए भी मोदी जी ही आगे आये और वॉर मेमोरियल बनवाया। हमारे प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी तो सेना को कभी चाहते ही नहीं थे... उनके हिसाब से भारत जैसे शांतिप्रिय देश को सेना नहीं चाहिए... इतना भारी भरकम खर्च नहीं करना चाहिए... उनकी इसी सोच के कारण उनके सेना के साथ सम्बन्ध अच्छे नहीं रहे। आजादी के बाद भारतीय सेना का नेतृत्व करने के लिए तीन बड़े अफसर तैयार थे... जिनमें से एक थे तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल करियप्पा... लेकिन नेहरू जी ने चुना था जनरल रॉय बुचर को... जो जनवरी 1949 तक भारतीय सेना के चीफ रहे। भारत के फील्ड मार्शल करियप्पा के साथ भी नेहरू जी ने कोई अच्छा व्यवहार नहीं किया। जब 1947-48 में पाकिस्तान के साथ लड़ाई हुई तो नेहरू जी UN पहुंच गए, जबकि 2-3 दिन और लड़ाई चलती तो POK, गिलगित बल्टीस्तान भारत के पास होते। जब तत्कालीन जनरल करियप्पा ने इस बारे में नेहरू जी से पूछा, तो उन्हें दुनिया जहाँ की राजनीति का ज्ञान मिला। 1951 में जब NEFA, जिसे हम अरुणाचल प्रदेश के नाम से जानते हैं... वहाँ कुछ चीनी सैनिक पकड़े गए थे, जिनके पास से कुछ आपत्तिजनक नक़्शे और जानकारियां मिली थी... जनरल करियप्पा ने यह बात जब नेहरू जी को बताई... तो उन्हें यह कह कर चुप करा दिया गया, कि अब क्या तुम हमें बताओगे कि हम किसे अपना दोस्त समझें और किसे दुश्मन। यह सारी जानकारियां फील्ड मार्शल करियप्पा के बेटे एयर मार्शल केसी करियप्पा ने उनकी बायोग्राफी में लिखी हैं। नेहरू जी ने फील्ड मार्शल करियप्पा के साथ बहुत खेल किये... उन्हें परेशान किया... उनकी सिफारिश नहीं मानते थे... और जब वह इस्तीफ़ा देने को कहते थे तो टाल मटोल करते थे। ऐसे ही नेहरू जी ने जनरल थिमैया जी के साथ किया... उन्हें गुस्सा हो कर इस्तीफ़ा देने को कहा... और कुछ ही घंटे बाद वापस लेने को कहा। 1962 के युद्ध में भी नेहरू जी ने अपने मनमुताबिक लोगों को युद्ध की अगुवाई करने को कहा... जनरल थापर... जो करण थापर के पिता हैं... और रोमिला थापर जिनकी भतीजी थी... उन्हें आगे बढ़ाया। और परिणाम क्या मिला, आपको पता ही है। भारत द्वितीय विश्व युद्ध के समय तक दुनिया के बड़े रक्षा उत्पाद देशों में आता था... मित्र देशों के लिए हमारी आयुध कारखानों से हथियार बन कर जाते थे... लेकिन नेहरू जी और उनके मित्र रक्षामंत्री मेनन के अनुसार तो यह सब बेकार था... उन्होंने आयुध कारखानों में हथियार की जगह चीनी मिट्टी के बर्तन... छोटे मोटे उपकरण बनवाने शुरू किये और सेना से सम्बंधित चीजें, जैसे कपड़े, जूते, मोज़े तक बनाने बंद कर दिए... और जब 1962 में युद्ध हुआ, तो हमारे पास गोलियां नहीं थीं... सैनिकों के लिए कपड़े नहीं थे... सर्दी से बचाव के लिए कपड़े नहीं थे... जूते मोज़े तक नहीं थे। 1971 का युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के सबसे बड़े युद्ध में से एक था... और 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों का आत्मसमर्पण करवाना तो बहुत बड़ा कारनामा था... जो आधुनिक इतिहास में अनूठा था। ऐसे कारनामें करने वाली आर्मी को मान सम्मान, पैसा मिलना चाहिए था... लेकिन मिला क्या?? आर्मी की OROP बंद कर दी गई। हमारे देश के हीरो, फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को कई सालों तक सैलरी और अन्य भत्ते नहीं दिए गए... इन चीजों के लिए उन्हें लड़ना पड़ा... और बाद में उनकी मृत्यु से कुछ ही समय पहले उन्हें यह पैसा दिया गया था। उनकी मृत्यु पर तत्कालीन केंद्रीय सरकार ने एक रक्षा राज्यमंत्री को भेजा... अन्य कोई मंत्री नहीं गया था... उनके अंतिम संस्कार में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, रक्षा मंत्री और यहाँ तक की तीनों सशस्त्र बल चीफ में से कोई नहीं गया। मानेकशॉ जी हमारे देश के सबसे बड़े हीरो में से एक रहे हैं... उनका कैसा सम्मान किया वो आप देख लीजिये। राजीव जी तो और भी आगे निकले... कहा जाता है कि भारतीय शांति रक्षा सेना को अपने अहंकार संतुष्टि के लिए श्रीलंका भेज दिया... कश्मीर जैसे ऊँचे इलाके और मैदानी इलाकों में तैनात सैनिकों को रातों रात जाफना के घने अँधेरे जंगलों में भेज दिया गया... वो भी गुरिल्ला आतंकवादियों LTTE से लड़ने के लिए। कभी समय हो तो जाफना विश्वविद्यालय हेलिड्रॉप के बारे में पढ़ियेगा... माना जाता है कि बिना किसी तैयारी और बेकार ख़ुफ़िया तंत्र के कारण हमारे 36 सैनिक मारे गए। जब हमारे सैनिकों को हेलीकाप्टर से जाफना विश्वविद्यालय में ड्रॉप किया गया... तब तक उन्हें चारों तरफ से घेर लिया गया था... और उसके बाद LTTE वालों ने उन्हें गोलियों से छिन्न भिन्न कर दिया था... एक एक सैनिक के शरीर में पचासों गोलियाँ पाई गईं थीं... इसी से समझ लीजिये यह कैसा ऑपरेशन हुआ होगा। कारगिल युद्ध से पहले तो हमारे सैनिकों के शव वापस घर भेजने की व्यवस्था ही नहीं होती थी... डेड बॉडी के दर्शन नहीं होते थे परिवार को। कारगिल युद्ध में पहली बार यह सुनिश्चित किया गया कि बलिदान हुए सैनिकों के परिवारों को उनकी डेड बॉडी तो मिलें... साथ ही कारगिल युद्ध के बाद ही मृत सैनिकों के परिवारों के लिए क्षतिपूर्ति रकम बढ़ाई गई... कई तरह की सहूलियत दी गई... बच्चों के लिए स्कूल कॉलेज में आरक्षण आदि दिया गया... परिवार को पेट्रोल पंप देने की व्यवस्था की गई। इस रकम को मोदी सरकार के आने के बाद और बढ़ाया गया। कांग्रेस को पसंद नहीं था कि मृत सैनिकों के शव उनके परिवारों को मिले... इसलिए कांग्रेस ने ताबूत घोटाले का हौवा खड़ा कर दिया... जॉर्ज फर्नांडिस जैसे बेहद ईमानदार नेता पर लांछन लगाया... और वह कई साल इस दाग़ को मिटाने के लिए लड़ते रहे... अंततः सुप्रीम कोर्ट ने सारे आरोप नकारे... लेकिन तब तक फर्नांडिस जी शारीरिक रूप से अक्षम हो चुके थे... उनके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था... वह अपने ऊपर लगे इस दाग़ को मिटने की ख़बर को समझे बिना ही दुनिया से चले गए। भारतीय सेना के CAOS को गली का गुंडा कहने वाला भी एक कांग्रेसी नेता ही था... शीला दीक्षित का बेटा संदीप दीक्षित। CAOS वीके सिंह को बदनाम करने वाले... और उन पर तख्तापलट करने का आरोप लगाने वाले भी कांग्रेस इकोसिस्टम के लोग थे। उरी की सर्जीकल स्ट्राइक, बालाकोट की सर्जीकल स्ट्राइक का पाकिस्तान से ज्यादा मजाक कांग्रेस वालों ने ही उड़ाया। चीन के साथ कभी भी झड़प होती है... तो कांग्रेस और उसका पूरा इकोसिस्टम भारतीय सेना को बदनाम करने के लिए खड़ा होता है। कोई कहता है चीन 1000 किलोमीटर अंदर आ गया... कोई कहता है हमारे जवान निकम्मे हैं। हमारे देश के प्रथम CDS, जनरल बिपिन रावत का अपमान करने वाले कांग्रेस के ही लोग थे... उनकी मृत्यु पर हंसने वाले भी उसी इकोसिस्टम के लोग थे। मोदी ने और CDS जनरल रावत ने मिलकर मेक इन इंडिया पर जोर दिया... जितने भी हथियार दूसरे देशों से लिए, सब गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट डील में लिए... और जो लिए उन्हें भारत में ही उत्पादन करने और तकनीक के हस्तांतरण की शर्त के साथ लिया। यही कारण था कि कांग्रेस वाले CDS रावत जी से चिढ़ते थे। OROP के लिए सेना 1971 से इसी कांग्रेस सरकार से लड़ रही थी... 2014 में जब इन्हें लगा कि अब सरकार नहीं बनेगी... तब सेना के लोगों को रिझाने के लिए चुनाव से पहले OROP के लिए मात्र 500 करोड़ रुपए आवंटित करके गए थे मनमोहन सिंह जी। जबकि 500 करोड़ में तो कुछ नहीं होता...जब मोदी जो ने OROP लागू किया... तो पुराने बकाये के रूप में 10,000 करोड़ रुपए की रकम लाखों पेंशनर्स को दी गई थी... उसके बाद हर साल 7-8 हजार करोड़ का सालाना खर्च सिर्फ OROP पेंशन में होता है। और कांग्रेस 500 करोड़ का लॉलीपॉप दिखा कर सैनिकों के वोट खरीदना चाहती थी... है ना कमाल की बात। और आज यही कांग्रेस वाले सेना के सम्मान की बात करते हैं... खैर कांग्रेस से ज्यादा तो हमारे देश के लोग कमाल हैं... जिन्हें यह सब पता होते हुए भी शर्म नहीं आती... और अपने छोटे मोटे स्वार्थ के लिए बिक जाते हैं।
    0 Comments 0 Shares 600 Views 0 Reviews
  • ⚡SHOCKING revelation from the Chennai Litigation Court: #Karunanidhi instructed LTTE to "Bomb Madras" to destabilize MGR, expressing disdain for Tamil Nadu's peace.

    The #LTTE carried out Bomb blasts based on his instructions.

    This case which concluded two days ago, dating back to the 1980s, presents a MOUNTAIN of evidence against the DMK founder.

    @mkstalin, @Udhaystalin, and @RahulGandhi remain SILENT. Why the deafening silence?

    Both Indian and Global Media have CONCEALED this bombshell news.

    Let's not overlook Karunanidhi's timely resignation just a day before Rajiv Gandhi's was killed by LTTE, paving the way for the ascent of KGB asset Antonio and set the tone for several Terrorists attacks and destruction of our Economy by foreign agencies.
    ⚡SHOCKING revelation from the Chennai Litigation Court: #Karunanidhi instructed LTTE to "Bomb Madras" to destabilize MGR, expressing disdain for Tamil Nadu's peace. The #LTTE carried out Bomb blasts based on his instructions. This case which concluded two days ago, dating back to the 1980s, presents a MOUNTAIN of evidence against the DMK founder. @mkstalin, @Udhaystalin, and @RahulGandhi remain SILENT. Why the deafening silence? Both Indian and Global Media have CONCEALED this bombshell news. Let's not overlook Karunanidhi's timely resignation just a day before Rajiv Gandhi's was killed by LTTE, paving the way for the ascent of KGB asset Antonio and set the tone for several Terrorists attacks and destruction of our Economy by foreign agencies.
    0 Comments 0 Shares 2180 Views 0 Reviews
  • Drugs worth ₹108 crores seized by DRI from Ramanathapuram near Mandapam. Massive Drug smuggling and terrorism activities percolated in Tamilnadu. Known for financing LTTE and Radical J1had1$
    Drugs worth ₹108 crores seized by DRI from Ramanathapuram near Mandapam. Massive Drug smuggling and terrorism activities percolated in Tamilnadu. Known for financing LTTE and Radical J1had1$
    0 Comments 0 Shares 2050 Views 0 Reviews
  • DMK Maran statement against people of Bihar, UP and stalin son statement to finish sanatan are not isolated slip of tongue but actually frustration since DMK politics which was build on Hindi and Non Hindi divide is falling like pack of card day by Day

    DMK came in politics on basis of Tamil pride which include their relation with LTTE. The Entire DMK political history is based on foundation of Hindi vs Non Hindi

    Earlier be it Congress or BJP, they didn't had any politician in TN who is connected to roots. Now that equation has changed by Annamalai

    he is connected to ground, proud Sanatani and from BJP with good hold on Law and Order experience

    TN is a train which is turning with a slow speed. Have patience, I can see a Sanatani TN in few years

    This is why I said TN Thali is in making few years back
    Dr G P
    DMK Maran statement against people of Bihar, UP and stalin son statement to finish sanatan are not isolated slip of tongue but actually frustration since DMK politics which was build on Hindi and Non Hindi divide is falling like pack of card day by Day DMK came in politics on basis of Tamil pride which include their relation with LTTE. The Entire DMK political history is based on foundation of Hindi vs Non Hindi Earlier be it Congress or BJP, they didn't had any politician in TN who is connected to roots. Now that equation has changed by Annamalai he is connected to ground, proud Sanatani and from BJP with good hold on Law and Order experience TN is a train which is turning with a slow speed. Have patience, I can see a Sanatani TN in few years This is why I said TN Thali is in making few years back Dr G P
    0 Comments 0 Shares 2289 Views 0 Reviews
  • After the arrest of a Bangladeshi national at Thiruvananthapuram airport in Kerala on August 13 with a fake passport for travelling to Sri Lanka, the central agencies have upped their ante and have alerted the Tamil Nadu state intelligence for an increased surveillance of the fake passport racket.

    It is to be noted that Chennai and Madurai are two major towns of South India from where several earlier instances of fake racket cases were detected.

    According to a senior officer, the now defunct LTTE is also on a revival path and there are networks that support them to gain illegal and fake passports.

    In May 2022, a three-member gang was arrested by the Chennai city police for preparing fake passports. The arrested were identified as Mohammed Illiaz Sheik, Mohammed Bukhari and their assistant, Sivakumar.

    Police had then stated that it was Illyas who was the kingpin of the racket and had been jailed twice earlier for fake passport cases.

    A few months before, a Bangladeshi national was arrested with a fake passport at the Coimbatore airport and he had also then told the immigration officials that he got the fake passport from Chennai.

    Earlier, Senior intelligence operative of LTTE, Santukam alias Sabesan was arrested from Chennai in October 2021 after being involved in a Rs 3,000 crore drug smuggling racket.

    https://www.thehansindia.com/tamilnadu/tamil-nadu-intelligence-central-agencies-probe-fake-passport-racket-816283
    After the arrest of a Bangladeshi national at Thiruvananthapuram airport in Kerala on August 13 with a fake passport for travelling to Sri Lanka, the central agencies have upped their ante and have alerted the Tamil Nadu state intelligence for an increased surveillance of the fake passport racket. It is to be noted that Chennai and Madurai are two major towns of South India from where several earlier instances of fake racket cases were detected. According to a senior officer, the now defunct LTTE is also on a revival path and there are networks that support them to gain illegal and fake passports. In May 2022, a three-member gang was arrested by the Chennai city police for preparing fake passports. The arrested were identified as Mohammed Illiaz Sheik, Mohammed Bukhari and their assistant, Sivakumar. Police had then stated that it was Illyas who was the kingpin of the racket and had been jailed twice earlier for fake passport cases. A few months before, a Bangladeshi national was arrested with a fake passport at the Coimbatore airport and he had also then told the immigration officials that he got the fake passport from Chennai. Earlier, Senior intelligence operative of LTTE, Santukam alias Sabesan was arrested from Chennai in October 2021 after being involved in a Rs 3,000 crore drug smuggling racket. https://www.thehansindia.com/tamilnadu/tamil-nadu-intelligence-central-agencies-probe-fake-passport-racket-816283
    WWW.THEHANSINDIA.COM
    Tamil Nadu intelligence, central agencies probe fake passport racket
    After the arrest of a Bangladeshi national at Thiruvananthapuram airport in Kerala on August 13 with a fake passport for travelling to Sri Lanka, the central agencies have upped their ante and
    0 Comments 0 Shares 2082 Views 0 Reviews