X, फेसबुक और व्हाट्सएप अपने प्रचंण्ड क्रांतिकारी दौर से गुजर रहा है...
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हर नौसिखिया क्रांति करना चाहता है...
कोई बेडरूम में लेटे-लेटे गौहत्या करने वालों को सबक सिखाने की बातें कर रहा है तो...
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किसी के इरादे सोफे पर बैठे-बैठे मँहगाई, बेरोजगारी या बांग्लादेशियों को उखाड़ फेंकने के हो रहे हैं...
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हफ्ते में एक दिन नहाने वाले लोग स्वच्छता अभियान की खिलाफत और समर्थन कर रहे हैं।
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अपने बिस्तर से उठकर एक गिलास पानी लेने पर नोबेल पुरस्कार की उम्मीद रखने वाले बता रहे हैं कि माँ-बाप की सेवा कैसे करनी चाहिए।
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जिन्होंने आजतक बचपन में कंचे तक नहीं जीते वे बता रहे हैं कि भारत रत्न किसे मिलना चाहिए!
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जिन्हें "गली-क्रिकेट" में इसी शर्त पर खिलाया जाता था कि बॉल कोई भी मारे पर अगर नाली में गई तो निकालना तुझे ही पड़ेगा वो आज कोहली को समझाते पाए जाएँगे कि उसे कैसे खेलना है।
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कई मर्द ऐसे हैं जिन्होंने देश में महिलाओं की कम जनसंख्या को देखते हुए अपनी नकली ID बनाकर जनसंख्या को बराबर कर दिया है।
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जिन्हें यह तक नहीं पता कि हुमायूं, बाबर का कौन था? वह आज बता रहे हैं कि किसने कितनों को काटा था ।
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कुछ दिन भर शायरियाँ पेलेंगे जैसे 'गालिब' के असली उस्ताद तो यहीं बैठे हैं !
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जो नौजवान एक बालतोड़ हो जाने पर रो-रो कर पूरे मोहल्ले में हल्ला मचा देते हैं वे देश के लिए सर कटा लेने की बात करते दिखेंगे!
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किसी भी पार्टी का समर्थक होने में समस्या यह है कि...
"भाजपा" समर्थक को अंधभक्त...
"आप" समर्थक उल्लू...
तथा "कांग्रेस"समर्थक बेरोजगार... करार दे दिये जाते हैं!
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कॉपी-पेस्ट करनेवालों के तो कहने ही क्या !
किसी की भी पोस्ट चेंप कर ऐसे व्यवहार करेंगे जैसे साहित्य की गंगा उनके घर से ही बहती है...और वो भी 'अवश्य पढ़े' तथा 'मार्केट में नया है' की सूचना के साथ।
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एक कप दूध पी लें तो दस्त लग जाएँ, ऐसे लोग हेल्थ की tips दिए जा रहे हैं।
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लेकिन समाज के असली जिम्मेदार नागरिक हैं: "टैगिए"...
इन्हें ऐसा लगता है कि जब तक ये गुड मॉर्निंग वाले पोस्ट पर टैग नहीं करेंगे तब तक लोगों को पता ही नहीं चलेगा कि सुबह हो चुकी है !
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जिनकी वजह से शादियों में गुलाबजामुन वाले स्टॉल पर एक extra आदमी खड़ा रखना जरूरी है वो आम बजट पर टिप्पणी करते हुए पाए जाते हैं...!
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कॉकरोच देखकर चिल्लाते हुये पूरे मोहल्ले में भागने वाले पाकिस्तान को धमका रहे होते हैं कि "अब भी वक्त है सुधर जाओ"!
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क्या वक्त आ गया है वाकई ।
धन्य हैं व्हाट्सएप, फेसबुक और X युग के क्रांतिकारी...!!!
Dr GP
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हर नौसिखिया क्रांति करना चाहता है...
कोई बेडरूम में लेटे-लेटे गौहत्या करने वालों को सबक सिखाने की बातें कर रहा है तो...
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किसी के इरादे सोफे पर बैठे-बैठे मँहगाई, बेरोजगारी या बांग्लादेशियों को उखाड़ फेंकने के हो रहे हैं...
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हफ्ते में एक दिन नहाने वाले लोग स्वच्छता अभियान की खिलाफत और समर्थन कर रहे हैं।
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अपने बिस्तर से उठकर एक गिलास पानी लेने पर नोबेल पुरस्कार की उम्मीद रखने वाले बता रहे हैं कि माँ-बाप की सेवा कैसे करनी चाहिए।
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जिन्होंने आजतक बचपन में कंचे तक नहीं जीते वे बता रहे हैं कि भारत रत्न किसे मिलना चाहिए!
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जिन्हें "गली-क्रिकेट" में इसी शर्त पर खिलाया जाता था कि बॉल कोई भी मारे पर अगर नाली में गई तो निकालना तुझे ही पड़ेगा वो आज कोहली को समझाते पाए जाएँगे कि उसे कैसे खेलना है।
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कई मर्द ऐसे हैं जिन्होंने देश में महिलाओं की कम जनसंख्या को देखते हुए अपनी नकली ID बनाकर जनसंख्या को बराबर कर दिया है।
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जिन्हें यह तक नहीं पता कि हुमायूं, बाबर का कौन था? वह आज बता रहे हैं कि किसने कितनों को काटा था ।
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कुछ दिन भर शायरियाँ पेलेंगे जैसे 'गालिब' के असली उस्ताद तो यहीं बैठे हैं !
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जो नौजवान एक बालतोड़ हो जाने पर रो-रो कर पूरे मोहल्ले में हल्ला मचा देते हैं वे देश के लिए सर कटा लेने की बात करते दिखेंगे!
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किसी भी पार्टी का समर्थक होने में समस्या यह है कि...
"भाजपा" समर्थक को अंधभक्त...
"आप" समर्थक उल्लू...
तथा "कांग्रेस"समर्थक बेरोजगार... करार दे दिये जाते हैं!
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कॉपी-पेस्ट करनेवालों के तो कहने ही क्या !
किसी की भी पोस्ट चेंप कर ऐसे व्यवहार करेंगे जैसे साहित्य की गंगा उनके घर से ही बहती है...और वो भी 'अवश्य पढ़े' तथा 'मार्केट में नया है' की सूचना के साथ।
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एक कप दूध पी लें तो दस्त लग जाएँ, ऐसे लोग हेल्थ की tips दिए जा रहे हैं।
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लेकिन समाज के असली जिम्मेदार नागरिक हैं: "टैगिए"...
इन्हें ऐसा लगता है कि जब तक ये गुड मॉर्निंग वाले पोस्ट पर टैग नहीं करेंगे तब तक लोगों को पता ही नहीं चलेगा कि सुबह हो चुकी है !
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जिनकी वजह से शादियों में गुलाबजामुन वाले स्टॉल पर एक extra आदमी खड़ा रखना जरूरी है वो आम बजट पर टिप्पणी करते हुए पाए जाते हैं...!
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कॉकरोच देखकर चिल्लाते हुये पूरे मोहल्ले में भागने वाले पाकिस्तान को धमका रहे होते हैं कि "अब भी वक्त है सुधर जाओ"!
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क्या वक्त आ गया है वाकई ।
धन्य हैं व्हाट्सएप, फेसबुक और X युग के क्रांतिकारी...!!!
Dr GP
X, फेसबुक और व्हाट्सएप अपने प्रचंण्ड क्रांतिकारी दौर से गुजर रहा है...
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हर नौसिखिया क्रांति करना चाहता है...
कोई बेडरूम में लेटे-लेटे गौहत्या करने वालों को सबक सिखाने की बातें कर रहा है तो...
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किसी के इरादे सोफे पर बैठे-बैठे मँहगाई, बेरोजगारी या बांग्लादेशियों को उखाड़ फेंकने के हो रहे हैं...
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हफ्ते में एक दिन नहाने वाले लोग स्वच्छता अभियान की खिलाफत और समर्थन कर रहे हैं।
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अपने बिस्तर से उठकर एक गिलास पानी लेने पर नोबेल पुरस्कार की उम्मीद रखने वाले बता रहे हैं कि माँ-बाप की सेवा कैसे करनी चाहिए।
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जिन्होंने आजतक बचपन में कंचे तक नहीं जीते वे बता रहे हैं कि भारत रत्न किसे मिलना चाहिए!
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जिन्हें "गली-क्रिकेट" में इसी शर्त पर खिलाया जाता था कि बॉल कोई भी मारे पर अगर नाली में गई तो निकालना तुझे ही पड़ेगा वो आज कोहली को समझाते पाए जाएँगे कि उसे कैसे खेलना है।
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कई मर्द ऐसे हैं जिन्होंने देश में महिलाओं की कम जनसंख्या को देखते हुए अपनी नकली ID बनाकर जनसंख्या को बराबर कर दिया है।
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जिन्हें यह तक नहीं पता कि हुमायूं, बाबर का कौन था? वह आज बता रहे हैं कि किसने कितनों को काटा था ।
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कुछ दिन भर शायरियाँ पेलेंगे जैसे 'गालिब' के असली उस्ताद तो यहीं बैठे हैं !
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जो नौजवान एक बालतोड़ हो जाने पर रो-रो कर पूरे मोहल्ले में हल्ला मचा देते हैं वे देश के लिए सर कटा लेने की बात करते दिखेंगे!
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किसी भी पार्टी का समर्थक होने में समस्या यह है कि...
"भाजपा" समर्थक को अंधभक्त...
"आप" समर्थक उल्लू...
तथा "कांग्रेस"समर्थक बेरोजगार... करार दे दिये जाते हैं!
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कॉपी-पेस्ट करनेवालों के तो कहने ही क्या !
किसी की भी पोस्ट चेंप कर ऐसे व्यवहार करेंगे जैसे साहित्य की गंगा उनके घर से ही बहती है...और वो भी 'अवश्य पढ़े' तथा 'मार्केट में नया है' की सूचना के साथ।
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एक कप दूध पी लें तो दस्त लग जाएँ, ऐसे लोग हेल्थ की tips दिए जा रहे हैं।
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लेकिन समाज के असली जिम्मेदार नागरिक हैं: "टैगिए"...
इन्हें ऐसा लगता है कि जब तक ये गुड मॉर्निंग वाले पोस्ट पर टैग नहीं करेंगे तब तक लोगों को पता ही नहीं चलेगा कि सुबह हो चुकी है !
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जिनकी वजह से शादियों में गुलाबजामुन वाले स्टॉल पर एक extra आदमी खड़ा रखना जरूरी है वो आम बजट पर टिप्पणी करते हुए पाए जाते हैं...!
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कॉकरोच देखकर चिल्लाते हुये पूरे मोहल्ले में भागने वाले पाकिस्तान को धमका रहे होते हैं कि "अब भी वक्त है सुधर जाओ"!
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क्या वक्त आ गया है वाकई ।
धन्य हैं व्हाट्सएप, फेसबुक और X युग के क्रांतिकारी...!!!
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